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महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के एक गांव औरअमेरिका में एक वरिष्ठ वैज्ञानिक बनने तक, भास्कर हलामी का जीवन एक मिसाल बन गया है। P10NEWS

 

मंदीप एम गोरडवार मुख्य संपादक (EDITOR IN CHIEF)

आदिवासी लड़का अमेरिका में बना वैज्ञानिक, बचपन में एक समय के खाने के लिए करना पड़ता था संघर्ष


चिरचडी 400 से 500 परिवारों का गांव है। हलामी के माता-पिता गांव में घरेलू सहायक के रूप में काम करते थे, क्योंकि उनके छोटे से खेत से होने वाली उपज परिवार का भरण पोषण करने के लिए पर्याप्त नहीं थी।


महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के एक गांव में बचपन में एक समय के भोजन के लिए संघर्ष करने से लेकर अमेरिका में एक वरिष्ठ वैज्ञानिक बनने तक, भास्कर हलामी का जीवन एक मिसाल बन गया है। चिरचडी गांव में एक आदिवासी समुदाय में पले-बढ़े हलामी अब अमेरिका के मेरीलैंड में बायोफार्मास्युटिकल कंपनी सिरनामिक्स इंक के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं। कंपनी दवाओं में रिसर्च करती है और हलामी RNA निर्माण का काम देखते हैं।


हलामी Graduation और PhD करने वाले चिरचडी गांव के पहले व्यक्ति हैं। हलामी और उनका परिवार शुरुआती दिनों में बहुत थोड़े में गुजारा करता था। उन्हें एक वक़्त के भोजन के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता था। गढ़चिरौली के एक कॉलेज से Graduation करने के बाद हलामी ने नागपुर में विज्ञान संस्थान से रसायन विज्ञान में Post-graduation डिग्री प्राप्त की। 2003 में हलामी को नागपुर के लक्ष्मीनारायण इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (LIT) में सहायक प्रोफेसर बने।  उन्होंने महाराष्ट्र लोकसेवा आयोग (MPSC) की परीक्षा पास की, लेकिन हलामी का ध्यान रिसर्च पर बना रहा और उन्होंने अमेरिका में पीएचडी की पढ़ाई की। DNAऔर RNA में बड़ी संभावना को देखते हुए उन्होंने Research के लिए इसी विषय को चुना। हलामी ने मिशिगन टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी से PhD की। हलामी अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता को देते हैं।



              मंदीप एम गोरडवार मुख्य संपादक.                                          EDITOR IN CHIEF.  

               


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